( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )
ऊँचि है प्रभुकी जगह ,
पहुँचे न कोई दूसरा || टेक ||
ढूँढते फिरते तुझे ,
कइ लाल साधू - जोगिया ।
लौटते हैं आखरी ,
पहुँचे न कोई दूसरा || १ ||
योगकी धरके समाधी ,
खोजते ब्रह्मांड में ।
गम नही चलती वहाँ
पहुँचे न कोई दूसरा || २ ||
बेद - शास्त्रोंका गुजारा ,
मौन लेकर हट गया ।
ना तर्कबुद्धी जा सके ,
पहुँचे न कोई दूसरा || ३ ||
है जिन्हें गुरुकी दया ,
वहि मौज पाते हैं वहाँ ।
एक भाव - भक्तीके बिना ,
पहुँचे न कोई दूसरा || ४ ||
कहत तुकड्या संत - संगत ,
खोज लो जाके कहीं ।
पलकमें चढ जाओगे ,
पहुँचे न कोई दूसरा || ५ ||
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